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Monday, April 26, 2010

तुम मुझे कैसे जिंदा पाते हो!


जब मै रूठ जाती हूँ
और तब तुम मुझे अपनी जान बताते हो
में तो मर ही जाती हूँ
तुम मुझे कैसे जिन्दा पाते हो!

जब मैं सोती हूँ तुम्हारे सीने पर सर रख कर
तुम पलकों पर मेरी वही खबाब सजाते हो
मैं तो मर ही जाती हूँ
तुम मुझे कैसे जिन्दा पाते हो!

जब तुम मेरे गले मै बाहें डालते हो और मैं खो जाती हूँ
तब तुम मेरे आँखों मै उतर कर दिल मै समां जाते हो
मैं तो मर ही जाती हूँ
तुम मुझे कैसे जिन्दा पाते हो !

जब तुम मेरी चोटी बनाते हो
और ओंठो से मरे गर्दन सहलाते हो
मैं तो मर ही जाती हूँ
तुम मुझे कैसे जिन्दा पाते हो!

रोज मुझे चाँद
और खुद  को मेरा महबूब बतलाते हो
मैं तो मर ही जाती हूँ
तुम मुझे कैसे जिन्दा पाते हो!

जब तुम अपने हाथो से बिंदिया,
और मेरी मांग सजाते हो
मैं तो मर ही जाती हूँ
तुम मुझे कैसे जिन्दा पाते हो !

कतरा कतरा बिखर जाती हूँ रात भर तेरी बाँहों मै,
फिर भी तुम मुझे सुबह तक समेट लाते हो
मैं तो मर ही जाती हूँ
तुम मुझे कैसे जिन्दा पाते हो......!!