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Tuesday, May 25, 2010

क्यूंकि सुखा पत्ता हूँ...

तन्हा तन्हा फिरता हूँ ,
क्यूंकि सुखा पत्ता हूँ,

घर तो लगता अपना ही है,
पर दीवारों से डरता हूँ,


जी रहे हैं सभी यहाँ,
में तो पल पल मरता हूँ,

तुम ठहरे रिश्तों के शहंशाह,
में तो अहसास का पुतला हूँ,

वो बिका तो किसी एक का हो गया ,
में तो बिकने के बाद भी बिकता हूँ,

इक बार जो आया तूफ़ान गुलशन में,
अब तक दर दर भटका हूँ,

नहीं आयूंगा लौट कर कभी बहार में,
फिर भी फुहार की हसरत रखता हूँ,

क्यूंकि सुखा पत्ता हूँ.