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Thursday, July 22, 2010

साया


यहीं तो हूँ मैं,

कहाँ जा सकती हूँ अब,

कहीं भी तो नहीं,

बस खुद को खुद में,

तो कभी तुम में खुद को तलाशती रहती हूँ ,

जो साया तुम्हारे पीछे है,

कहीं वो मेरा तो नहीं,

या शायद जो साया मेरे साथ है,

वो तुम्हारा तो नहीं,

बस यूँही भटकती रहती हूँ मैं अक्सर अंधेरों में ,

लेकिन देखो ना ,

फिर भी गुम नहीं हो पाती हूँ मैं,

क्यूंकि तुम मुझे ढूंढ ही लाते हो,

कभी ख्यालों में,

कभी खवाबों में,

तुम कब हाथ थाम लेते हो

पता ही नहीं चलता,

इसीलिए खुद को तन्हा भी तो नहीं कह सकती हूँ में,

तुम्हारा अहसास भर रोज़ मुझे चंद साँसे दे जाता है,

तुम्हे जीने के लिए ,

तुम में ,

खुद को फिर से ढूंढ लाने के लिए,

तुम्हारे नज़दीक आने के लिए,

जब तुम छू लेते हो ,मेरे नर्म गर्म होंठों को ,

तब मैं मर कर भी जी उठती हूँ ,

तुम्हारी आगोश में,

क्यूँ तुम मुझे यूँही नहीं पड़े रहने देना चाहते ,



अपनी आगोश में ,

बस आज मुझे मर जाने दो अपनी बाहों में ,

बस एक बार,

बस इस बार,

बस आखिरी बार....

 

Thursday, July 1, 2010

~: शब्द :~


आज कुछ शब्द खुद के लिए बो देना चाहती हूँ
शायद कोई फूल, कोई शाख खिल उठे मेरे लिए
जानती हूँ,
उगा रही हूँ, बंजर जमीन पर
उगेगा तो क्या अंकुरित भी नहीं हो पायेगा
लेकिन अपने तसल्ली के लिए उगा लेना चाहती हूँ
अपने खबाब के बंजर जमीन पर
कुछ शब्द अपने लिए
जिन्हें आज तक बोया तो बहुत बार
लेकिन काटने की रुत आने से पहले ही मुरझा जाते हैं
शायद मेरे आँखों का पानी कम हो गया
उन्हें सींचने के लिए
चलो फिर से कोई घाव दे दो मुझे
ताकि नयनों का नीर सूखने न पाए
मेरे शब्दों का पौधा मुरझाने न पाए............