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Monday, August 16, 2010

मेरे खबाब


कुछ मेरी अनकही,
कुछ अपनी कही हुए वो सब बातें,
सब उकेर दो कागजों पर,
कुछ सपने लिखना ,
कुछ लम्हे लिखना,
जिन्हें अक्सर जीती हूँ मैं तुम्हारे लिए ,
कुछ रातें,
कुछ बीते हुए, अहसास भी लिख देना,
जीना चाहती हूँ मैं फिर से वही अहसास,
फिर से सजा लुंगी अपनी आँखों में,
भर लुंगी उन्हें मोतियों की तरह,
लेकिन तुम्हे आज एक वादा करना होगा,
इन मोतियों को गिरने नहीं दोगे कभी,
किसी और के कंधे पर,
खा लो कसम...
समेट लोगे मुझे,
मेरे खवाबों को सजा लोगे अपनी पलकों पर
मेरे लिए तोड़  लाओगे वो चाँद,
जो रोज़ मुझे और मेरी मोहब्बत को निहारा करता है,
अक्सर तुम्हारी खिड़की से,
इस बार छिपा दूंगी में उसे किसी कोने में,
नहीं चाहिए तुम्हारे होते हुए मुझे चाँद और चांदनी.
और फिर बस में और तुम, और हमारी रात,
तुम और तुम्हारी बात.
बस तुम और तुम्हारी, मेरी बात.