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Wednesday, September 29, 2010

क्यूँ ......


































क्यूँ ......
आज कल कुछ सूझता नहीं मुझे,
क्या कहूँ मैं तुमसे?
तुम ही कुछ कहो ना...
जब से तुमने मुझे अपना मान लिया है ,
ना जाने तब से शब्द कहाँ खो गए हैं,
बस अब धड़कने और मेरी साँसे बोलती हैं ,
ना जाने ,क्यूँ तुम उन्हें नहीं सुनते,
क्यूँ अपनी धडकनों से मेरी धडकनों की बात नहीं करते,
कल रात भी जब मैं तुम्हारे सीने पर सर रख कर बहुत कुछ कह रही थी ,

ख़ामोश से मेरे लब ,
शब्दों का बोझ उठा नहीं पा रहे थे,
तब मेरी धड़कने सब कह रहीं थीं,
तब भी तुमने कुछ नहीं सुना था,
है ना!!!!!
बस एक टक निहारते रहते हो मुझे ,
चूमते रहते हो मेरी बंद पलकों को,
और उस वक़्त...
मैं मर कर भी जी उठती हूँ ,
तुम्हारी बाहों में,
वादा करो.......
तुम मुझे यूँही जिंदा रखोगे ,
अपने ख्यालों में,
जैसे मैंने आज तक तुम्हे जिंदा रखा है अपनी रूह में ,
पल पल मरने के बाद भी ,
जी रही हूँ सिर्फ तुम्हारे लिए.

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क्यूँ ......

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Thursday, September 16, 2010

इतंजार















इंतज़ार......


और बस इंतज़ार...

कब ख़त्म होगा ये इंतज़ार,

क्या तब ...

जब मैं बिखर जायुंगी,

या तब....

जब मैं सिमट नहीं पायुंगी,

क्यूँ ख़त्म नहीं होता अमावस की रात सा इंतज़ार,

सूनी राह पर पडे मील के पत्थर का इंतज़ार,

उफ्फ ये इंतज़ार,

क्यूँ कर रही हूँ ,और किसका कर रही हूँ मैं इंतज़ार,

क्या उसका, जो कभी ना लौट आने के लिए चला गया ,

या फिर उसका ..

जो बस उम्मीद दे गया लौट आने की,

जानती हूँ व्यर्थ है अब इंतज़ार...

फिर भी पलकें बिछाए कर रही हूँ इंतज़ार..

जबकि जानती हूँ ,

अब बस उतना ही समय रह गया है मेरे पास ,

जितना हाथ से फिसलती हुई रेत के पास होता है,

मुट्ठी मे रहने का ,

अब कहो...

क्या इतनी जल्दी आ पायोगे

क्या मुझे अपनी हथेलियों मे समेटे रख सकोगे,

नहीं ना....

क्युंकी तुमने मुझे रेत से बढ़ कर कभी अपनी हथेलियों मैं समेटा ही नहीं,

क्युंकी मैं सच मे रेत हूँ ,

और तुम समय,

तुम मेरे लिए कब रुके हो?

कभी नहीं....

लेकिन...

मैं आज भी रुकी हुई हूँ,

सूनी राहों मे तुम्हारी यादों को हमसफ़र बना कर ,

मैं आज भी कर रही हूँ,

तुम्हारा इंतज़ार............