दिन बिताये तुम्हारे इंतज़ार मे,
काट ली रातें, मैंने आँखों मे,
ना तुम आये लौट कर कभी ,
ना कभी खवाब आये रातों मे,
दिन भर मुस्कुराई तुम्हारा ख़याल करके,
और तुम्हे याद कर अश्क बहाए रातों मे,
तुम मिलते, तो गिला करती तुमसे,
खुद से शिकवे किये मैंने रातों मे,
तुमसे मिलना हुआ बस ख्यालों मे,
और यूँही मिलती रही जज्बातों से ,
आस अधूरी ही रही मिलन,
सावन की बरसातों मे,
वो कैसे जानता मेरे दिल की बात ,
जब कोई बात हुए ही नहीं अल्फाज़ो मे,
चाँद रोज निकलता है चाँदनी लेकर
और मैं सुलग रही हूँ रातों मे,
धरती मिलती है क्या कभी गगन से,
या फिर यूँही सफ़र किये जा रही हूँ कई सालों से ....