वही नजदीकियां ,
वही फांसले भी थे ,
रहे क़दमों के निशाँ मिटते मगर ,
फिर भी इस दिल ने याद तुम्हे बहुत किया...
वही रस्मे...
वही रवायतें भी निभती रहीं ,
भीड़ में रहे दोनों मगर,
फिर भी इस दिल ने याद तुम्हे बहुत किया...
कभी शर्म -ओ- हया ,
कभी तपिश-ए-बदन,
रहे जलते -बुझते दोनों मगर ,
फिर भी इस दिल ने याद तुम्हे बहुत किया...
वही झुकी पलकें मेरी रहीं ,
वही ख्वाब मेरा तेरे तकिये तले,
रहे जागते दोनों मगर ,इज़हार न तूने किया न मैंने किया,
फिर भी इस दिल ने याद तुम्हे बहुत किया...
ज़माने की खातिर मैं हो गयी बे-वफ़ा,
बिन मिले बिछड़े दोनों मगर,
ना अपने हिस्से का प्यार मैंने किया न तूने किया,
फिर भी इस दिल ने याद तुम्हे बहुत किया.....[नीलम] —
वही फांसले भी थे ,
रहे क़दमों के निशाँ मिटते मगर ,
फिर भी इस दिल ने याद तुम्हे बहुत किया...
वही रस्मे...
वही रवायतें भी निभती रहीं ,
भीड़ में रहे दोनों मगर,
फिर भी इस दिल ने याद तुम्हे बहुत किया...
कभी शर्म -ओ- हया ,
कभी तपिश-ए-बदन,
रहे जलते -बुझते दोनों मगर ,
फिर भी इस दिल ने याद तुम्हे बहुत किया...
वही झुकी पलकें मेरी रहीं ,
वही ख्वाब मेरा तेरे तकिये तले,
रहे जागते दोनों मगर ,इज़हार न तूने किया न मैंने किया,
फिर भी इस दिल ने याद तुम्हे बहुत किया...
ज़माने की खातिर मैं हो गयी बे-वफ़ा,
बिन मिले बिछड़े दोनों मगर,
ना अपने हिस्से का प्यार मैंने किया न तूने किया,
फिर भी इस दिल ने याद तुम्हे बहुत किया.....[नीलम] —