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Tuesday, September 23, 2014

जब तुम नहीं होते ...

तुम्हरे होने पर होती हूँ मैं भी अपने साथ 
जब तुम नहीं होते तो मैं खुद मैं भी बाकी नहीं रहती.

_.[नीलम] —


शमा केसर आग

शमा के सर आग रखी परवाने ने,
फिर खुद झुलस गया उसे बुझाने में 

_[नीलम] _

मौन शब्द ..

मैं क्या कहूँ अब..
तुम ही कुछ कहो ना ..
तुम्हारे लबों पर ख़ामोशी कहाँ अच्छी लगती है
तुम्हारे खामोश होते ही ,
मेरी धड़कनों की आवाज़ शोर करने लगती है ..

और मैं ..
उनकी आवाज़ सुनना नहीं चाहती ,
अब तो बोलो ना ,
मेरी ख़ामोशी को खामोश रखने के लिए ,
कुछ तो कहो ना ....
कुछ तो बोलो
अगर तुम खामोश हो जाओगे ,
तो मेरे मौन को कौन कहेगा ,
कौन कहेगा मेरे मन की बात ...
वैसे ही ...
जैसे ...
तुम कहते हो
अपनी कविताओं में
मौन शब्दों के संग...!!! …_[नीलम]-.

सवाल बहरे ,जवाब गूंगे . . . .

उफ़!!!!
तुम्हारे गूँजते सवाल 
खामोश पड़े रहने दो ना इन्हे 
जानते हो ना 
जवाब नहीं दे पायूंगी मैं 
क्यूंकि....
तुम्हारे सवाल बहरे
और ...
मेरे जवाब गूंगे.

 ..[नीलम] ..

साया ...

तू साथ होकर भी साथ नहीं ,
कहीं साये सी तो तेरी ज़ात नहीं .._[नीलम] _

Tuesday, September 16, 2014

आदत ...


देखो…
तुम जाने की बात तो करो मत ,
तुम जानते नहीं हो ....
अब तुम आदत हो गए हो मेरी ,
और तुम्हारी आदत …
जो एक बार लग गई ,
तो लग गई.
लाख कोशिशों के बाद भी ,
इसे बदल नहीं पायूँगी ,
या यूँ कहो ,
बदलना नहीं चाहती ,
इसलिए अब कभी जाने की बात ना करना,
बस अब साथ रहना ,
यूँही सही …
मगर मेरे आस पास...
क्यूंकि ...
अब तुम अजनबी भी तो नहीं रहे ना !!! _[नीलम ]_

Friday, May 2, 2014

"आखिरी झूठ".... ,


झूठ........
हाँ झूठ .
फिर से बोला एक और झूठ
आज मैं ने
"ख़ुद" से खुद ही,
खुद को समझाने की खातिर !

नहीं हारी मैं अब तक,
परिस्तिथियाँ कैसी भी हों
कैसा भी हो मौसम का मिज़ाज ,

बहुत "मज़बूत" हूँ मैं ,
एक और झूठ बोला मैं ने खुद से ------!

आहा !!!
कमाल हो गया ....
हो गया नई ऊर्जा का संचार
निखर - निखर संवर-संवर सी गई " मैं "
एक नया हौसला एक नई उमंग,
शुरू हो गयी फिर से एक नई जंग,
खुद से खुद को जुदा करने के लिए।

हार - जीत..
जीत - हार...
ज़िंदगी को देनी है नई रफ़्तार...

मगर खुद का" विश्वास" बढ़ाने के लिए ,
बस एक "आखिरी" झूठ ,
सबसे बड़ा झूठ ,

"उम्मीद " …

इसके बाद .....
किसी और "झूठ "की कोई जरुरत नहीं ,
इसी के सहारे तो बीत जाती है ,
सारी जिंदगी ……!!!
_[नीलम]_

Wednesday, April 16, 2014

आवाज़ें......

आवाज़ें ……

आवाज़ें मर जाती है 
मगर ...

ज़िंदा रहती हैं खामोशियाँ 
और खामोशियाँ
अक्सर शोर करती हैं 
गूंजती हैं
सन्नाटों में 
कभी महसूस करना तुम 
तब 
जब
तुम्हारे चारों ओर पसरा हुआ हो
ढेर सारा सन्नाटा
और हाँ...
तुम्हारे घर की दीवारों पर टंगी हुई हों 
सिर्फ मेरी यादें .

_[नीलम]_

नींद ......

जाने क्यूँ मेरी रातें सुलग जाती हैं ,
ना तुम आते हो ,ना नींद ही  आती है। [नीलम]

Friday, February 21, 2014

विदा . . .




जो अपने थे मगर अपने नहीं थे, फिर भी अपनों से बढ़कर थे,
उनके चले जाने की कमी बेहद्द तक़लीफ़ देती हैं, क्यूंकि कई बार हम अपनों से भी वो सब साझा नहीं कर पाते जो करना चाहते हैं, और तब यही अपने जो अपने नहीं होते, फिर भी अपनों से बढ़कर लगते हैं,
क्यूंकि हम उन्हें कह पाते हैं अपने मन की हर ख़ुशी, हर दर्द ,
और जब यही अपने दूर बहुत दूर चले जाते हैं ,तब जो रिक्तता आती है जीवन में उसे कोई दूसरा भर नहीं पाता , तब बेहद्द अकेलापन महसूस होता है , और तब शब्दकोष का सबसे रुआंसा शब्द बन जाता है विदा......


मुश्किल होता है कह पाना ...
विदा....
जो शब्दकोष का सबसे ruy शब्द  है ,
विदा शब्द ज़ेहन में आते ही तड़पने लगता है मन ,
विदा लेते ही छलकने लगती हैं आँखें ,
जाने क्यूँ ,
विदा ले लेने के बाद भी ,
शेष रह जाता है सब कुछ ,
जो किसी के चले जाने के बाद भी ,
गया हुआ नहीं लगता ,
लगता है तो बस इतना ,
जैसे रिक्त हो गया हो कोई स्थान ,
मगर रिक्त नहीं होती यादें,
और विदा होने के बाद भी रह जाते हैं शेष...
आंसूं ,यादें ,और स्पष्ट होते हुए चेहरे !!!! [नीलम]

(शब्दकोष का सबसे रुआंसा शब्द है विदा.....) ये लाईनें मैंने दीपक अरोरा जी की रचना में पढ़ीं थीं , उन्ही से प्रेरित होकर कुछ लिखने की कोशिश की है , या यूँ कहिये अपनों से विदा होने का दंश जो मैं भी झेल रही हूँ उसे शब्द देने कि कोशिश की है ……..

Thursday, February 13, 2014

इजहार नहीं करता . . .








ये बात और है , मैं इज़हार नहीं करता ,
लेकिन ये भी झूठ है ,के मैं तुझे प्यार नहीं करता।।[नीलम]

                                           

Wednesday, February 12, 2014

टैग ...

टैग ..या ...साझा ..
मालूम है क्यूँ टैग करते हैं हम ..!!!!
मैंने कई मित्रों को अपने स्टेटस पर ये लिखने को मजबूर पाया की .. कृपया मुझे टैग ना करें अन्यथा टेग करने वाले को ब्लाक करना पड़ेगा...
अरे भाई क्यूँ..?
टैग करना कोई गुनाह है क्या..?
ये तो फेसबूक के द्वारा प्रदत एक सुविधा मात्र है...
टैग करने के भी कई कारण होते हैं ..जैसे ..
जो हम लिखते हैं ,सोचते हैं , महसूस करते हैं, उसे अपने सभी देखे ,अनदेखे, सुने ,अनसुने मित्रों से साझा करना चाहते हैं, जानना चाहते हैं की जो हम सोच रहे हैं , लिख रहे हैं , क्या वो आपको भी सही लगता है.. क्या आपको भी वो महसूस होता है जो मुझे महसूस होता है...और बस इसी जिज्ञासा , और मन में उमड़ते विचारों को आप सबसे साझा करती हूँ...
जानती हूँ कई मित्रों को पसंद नहीं की कोई उनके साथ अपने विचार साझा करे... ऐसे मैं उन्हें पूर्ण आजादी है के वो उस टैग को हटा दे, या उसे अनदेखा कर दें ..
मुझे नहीं पता बाकी लोग टैग क्यूँ करते हैं.. मेरे टैग करने की वजह ये है ... !!!
मैं टैग उन्हें करती हूँ जिन्हें मैं अपने से ज्यादा अनुभवी मानती हूँ , कह सकते हैं उनके कमेंट्स मेरे लिए लेखन के हौसले को बढाने का काम करते हैं.
ऐसा नहीं है की मैं टैग सिर्फ तारीफ पाने के लिए करती हूँ.. अगर किसी को मेरी लिखी कोई भी रचना या शायरी में कोई त्रुटी नज़र आये तो वो अपने विचार खुल कर लिख सकते हैं.. तभी तो मैं बेहतर लिखना सीख पायुंगी ना..
जब भी कुछ लिखती हूँ तो मन में एक बच्चे की तरह जिज्ञासा जागृत होती है की जो मैंने लिखा क्या वो सही है.. और बस झट से आप सभी को टैग कर देती हूँ..
आशा करती हूँ आप मेरे टैग को सराहेंगे और अपने विचार भी जरुर मुझसे साझा करेंगे...

टेग ...


टैग ..या ...साझा ..
मालूम है क्यूँ टैग करते हैं हम ..!!!!
मैंने कई मित्रों को अपने स्टेटस पर ये लिखने को मजबूर पाया की .. कृपया मुझे टैग ना करें अन्यथा टेग करने वाले को ब्लाक करना पड़ेगा...
अरे भाई क्यूँ..?
टैग करना कोई गुनाह है क्या..?
ये तो फेसबूक के द्वारा प्रदत एक सुविधा मात्र है...
टैग करने के भी कई कारण होते हैं ..जैसे ..
जो हम लिखते हैं ,सोचते हैं , महसूस करते हैं, उसे अपने सभी देखे ,अनदेखे, सुने ,अनसुने मित्रों से साझा करना चाहते हैं, जानना चाहते हैं की जो हम सोच रहे हैं , लिख रहे हैं , क्या वो आपको भी सही लगता है.. क्या आपको भी वो महसूस होता है जो मुझे महसूस होता है...और बस इसी जिज्ञासा , और मन में उमड़ते विचारों को आप सबसे साझा करती हूँ...
जानती हूँ कई मित्रों को पसंद नहीं की कोई उनके साथ अपने विचार साझा करे... ऐसे मैं उन्हें पूर्ण आजादी है के वो उस टैग को हटा दे, या उसे अनदेखा कर दें ..
मुझे नहीं पता बाकी लोग टैग क्यूँ करते हैं.. मेरे टैग करने की वजह ये है ... !!!
मैं टैग उन्हें करती हूँ जिन्हें मैं अपने से ज्यादा अनुभवी मानती हूँ , कह सकते हैं उनके कमेंट्स मेरे लिए लेखन के हौसले को बढाने का काम करते हैं.
ऐसा नहीं है की मैं टैग सिर्फ तारीफ पाने के लिए करती हूँ.. अगर किसी को मेरी लिखी कोई भी रचना या शायरी में कोई त्रुटी नज़र आये तो वो अपने विचार खुल कर लिख सकते हैं.. तभी तो मैं बेहतर लिखना सीख पायुंगी ना..
जब भी कुछ लिखती हूँ तो मन में एक बच्चे की तरह जिज्ञासा जागृत होती है की जो मैंने लिखा क्या वो सही है.. और बस झट से आप सभी को टैग कर देती हूँ..
आशा करती हूँ आप मेरे टैग को सराहेंगे और अपने विचार भी जरुर मुझसे साझा करेंगे...

अपने होने केअहसास ...

किसी की याद में 
खामोश रह कर एसा लगता है
जैसे छू लिया हो आसमान 
डूब गए हों समंदर की गहराईओं में
शबनम के कतरे को जैसे चख लिया हो
लगता है जैसे
जान लिया हो 
अपने होने के अहसास को.

--[नीलम]--