मैं क्या कहूँ अब.. तुम ही कुछ कहो ना ..
तुम्हारे लबों पर ख़ामोशी कहाँ अच्छी लगती है तुम्हारे खामोश होते ही , मेरी धड़कनों की आवाज़ शोर करने लगती है ..
और मैं .. उनकी आवाज़ सुनना नहीं चाहती , अब तो बोलो ना , मेरी ख़ामोशी को खामोश रखने के लिए , कुछ तो कहो ना ....
कुछ तो बोलो अगर तुम खामोश हो जाओगे , तो मेरे मौन को कौन कहेगा , कौन कहेगा मेरे मन की बात ...
वैसे ही ... जैसे ...
तुम कहते हो अपनी कविताओं में मौन शब्दों के संग...!!! …_[नीलम]-.
देखो… तुम जाने की बात तो करो मत , तुम जानते नहीं हो .... अब तुम आदत हो गए हो मेरी , और तुम्हारी आदत … जो एक बार लग गई , तो लग गई. लाख कोशिशों के बाद भी , इसे बदल नहीं पायूँगी , या यूँ कहो , बदलना नहीं चाहती , इसलिए अब कभी जाने की बात ना करना, बस अब साथ रहना , यूँही सही … मगर मेरे आस पास... क्यूंकि ... अब तुम अजनबी भी तो नहीं रहे ना !!! _[नीलम ]_