मैं उतना ही गढ़ पाती हूँ खुद को
जितना तुम पढ़ पाते हो मुझको
*नीलम*
धूमकेतु सी बन मैं
जब बहने लगती हूँ
तुम्हारी कविताओं में
तब
तुम भी ध्रुव तारे सा बन विचरने लगते हो
मेरे साथ
मेरी कवितायों में
ऐसे
जैसे मुझे तुम पाते हो अपने
रेड एंड वाइट के धुयें से बने
गोल गोल छ्लों में
- नीलम -
तुम्हारे सारे लफ्ज पुरुष ही तो हैं जो शोर करते हैं भीड में
और मेरे लफ्ज स्त्री जो खामोशी में भी सुनते है पसरा हुआ सन्नाटा .
...नीलम..
खूब आता है तुम्हे मुझे देख के छुप जाने का हुनर
हवा के झोंके सा मगर छू के फ़िर गुजरते क्यों हो
- - नीलम- - -