जब मै रूठ जाती हूँ
और तब तुम मुझे अपनी जान बताते हो
में तो मर ही जाती हूँ
तुम मुझे कैसे जिन्दा पाते हो!
जब मैं सोती हूँ तुम्हारे सीने पर सर रख कर
तुम पलकों पर मेरी वही खबाब सजाते हो
मैं तो मर ही जाती हूँ
तुम मुझे कैसे जिन्दा पाते हो!
जब तुम मेरे गले मै बाहें डालते हो और मैं खो जाती हूँ
तब तुम मेरे आँखों मै उतर कर दिल मै समां जाते हो
मैं तो मर ही जाती हूँ
तुम मुझे कैसे जिन्दा पाते हो !
जब तुम मेरी चोटी बनाते हो
और ओंठो से मरे गर्दन सहलाते हो
मैं तो मर ही जाती हूँ
तुम मुझे कैसे जिन्दा पाते हो!
रोज मुझे चाँद
और खुद को मेरा महबूब बतलाते हो
मैं तो मर ही जाती हूँ
तुम मुझे कैसे जिन्दा पाते हो!
जब तुम अपने हाथो से बिंदिया,
और मेरी मांग सजाते हो
मैं तो मर ही जाती हूँ
तुम मुझे कैसे जिन्दा पाते हो !
कतरा कतरा बिखर जाती हूँ रात भर तेरी बाँहों मै,
फिर भी तुम मुझे सुबह तक समेट लाते हो
मैं तो मर ही जाती हूँ
तुम मुझे कैसे जिन्दा पाते हो......!!
aapkeee ye kavita itna dil ke kareeb hai ki lagta hai kabhi meri preysi ne mujhe kaha ho.......:)
ReplyDeletedil ke bahut karib rachna..........!!
मरना ही तो असली जीना है। बस इस जीने पर चढ़ने से डर ही तो लगता है।
ReplyDeleteहिन्दी टिप्पणी के मार्ग में अंग्रेजी के वर्ड वेरीफिकेशन रूपी बाधा को डेश बोर्ड की सैटिंग में जाकर कमेंट्स में जाकर वर्ड वेरीफिकेशन अथवा शब्द पुष्टिकरण डिसेबल या निष्क्रिय करें।
वाह वाह - बहुत खूब
ReplyDeleteतारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.
ReplyDeleteMukesh ji shukriya.:)
ReplyDeleteAvinash jee ,shukriya.
ReplyDeletejee main theek karne ki ksoshish karti hoon abbhi main jayada kuch jaanti nahi hoon blog ki setting ke baare main.
Rakesh jee..shukriya .
ReplyDeleteSanjay jee..tahe dil se shukr guzaar hain hum.
ReplyDeleteप्रथमतः आदरणीय नीलम जी को मेरा नमस्कार ! बहुत ही सशक्त, उम्दा और भावपूर्ण बिम्ब-प्रतिबिम्बों के साथ सुदर प्राणयाभिव्यक्ति के लिए आभार !
ReplyDeleteye kavita aapki bahut gahri hai
ReplyDeletesubah se 3 baar padh chuki hun
lovely poem n very romantic...........hats off to u
ReplyDeleteBahut khoob... great...you have so freshness in your poetry...!!
ReplyDeleteNarendra jee Namskaar ..main tahe dil se aapki shukra guzaar hoon.:)
ReplyDeleteShraddha jee..bahut bahut shukriya..aap khud behadd umdaa likhti hain ye to aapka baddapan hai jo aap meri kavita ki itni tareef kar rahi hain.:)
ReplyDeleteChaaru sis...thanx lot.
ReplyDeleteMay god bless u.