क्यूँ ......
आज कल कुछ सूझता नहीं मुझे,
क्या कहूँ मैं तुमसे?
तुम ही कुछ कहो ना...
जब से तुमने मुझे अपना मान लिया है ,
ना जाने तब से शब्द कहाँ खो गए हैं,
बस अब धड़कने और मेरी साँसे बोलती हैं ,
ना जाने ,क्यूँ तुम उन्हें नहीं सुनते,
क्यूँ अपनी धडकनों से मेरी धडकनों की बात नहीं करते,
ख़ामोश से मेरे लब ,
शब्दों का बोझ उठा नहीं पा रहे थे,
तब मेरी धड़कने सब कह रहीं थीं,
तब भी तुमने कुछ नहीं सुना था,
है ना!!!!!
बस एक टक निहारते रहते हो मुझे ,
चूमते रहते हो मेरी बंद पलकों को,
और उस वक़्त...
मैं मर कर भी जी उठती हूँ ,
तुम्हारी बाहों में,
वादा करो.......
तुम मुझे यूँही जिंदा रखोगे ,
अपने ख्यालों में,
जैसे मैंने आज तक तुम्हे जिंदा रखा है अपनी रूह में ,
पल पल मरने के बाद भी ,
जी रही हूँ सिर्फ तुम्हारे लिए.
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