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Thursday, September 16, 2010
इतंजार
इंतज़ार......
और बस इंतज़ार...
कब ख़त्म होगा ये इंतज़ार,
क्या तब ...
जब मैं बिखर जायुंगी,
या तब....
जब मैं सिमट नहीं पायुंगी,
क्यूँ ख़त्म नहीं होता अमावस की रात सा इंतज़ार,
सूनी राह पर पडे मील के पत्थर का इंतज़ार,
उफ्फ ये इंतज़ार,
क्यूँ कर रही हूँ ,और किसका कर रही हूँ मैं इंतज़ार,
क्या उसका, जो कभी ना लौट आने के लिए चला गया ,
या फिर उसका ..
जो बस उम्मीद दे गया लौट आने की,
जानती हूँ व्यर्थ है अब इंतज़ार...
फिर भी पलकें बिछाए कर रही हूँ इंतज़ार..
जबकि जानती हूँ ,
अब बस उतना ही समय रह गया है मेरे पास ,
जितना हाथ से फिसलती हुई रेत के पास होता है,
मुट्ठी मे रहने का ,
अब कहो...
क्या इतनी जल्दी आ पायोगे
क्या मुझे अपनी हथेलियों मे समेटे रख सकोगे,
नहीं ना....
क्युंकी तुमने मुझे रेत से बढ़ कर कभी अपनी हथेलियों मैं समेटा ही नहीं,
क्युंकी मैं सच मे रेत हूँ ,
और तुम समय,
तुम मेरे लिए कब रुके हो?
कभी नहीं....
लेकिन...
मैं आज भी रुकी हुई हूँ,
सूनी राहों मे तुम्हारी यादों को हमसफ़र बना कर ,
मैं आज भी कर रही हूँ,
तुम्हारा इंतज़ार............
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क्यूंकि मैं रेत हूँ
ReplyDeleteऔर तुम समय
तुम मेरे लिए कब रुके हो
कभी नहीं और न कभी रुकोगे
इसलिए..........
बस ख़त्म हुआ अब इतंजार
बहुत ही खूबसूरत रचना
सुनी रह पे पड़े मील के पत्थर पंक्ति में सूनी राह ठीक करलें और या उस अपना का जो में..अपना-अपने.. कर लीजिए... शायद टाइप करते समय रह गया है पर पढ़ने में तारतम्यता बाधित होती है
खूबसूरती से उकेरे हैं भाव ...
ReplyDeleteकृपया कमेंट्स की सेटिंग में जा कर वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें ,,टिप्पणी कर्ता को टिप्पणी देने में सरलता होगी
बेहतरीन अभिव्यक्ति…………गज़ब का लेखन्।
ReplyDeleteutna hi samay rah gaya hai, jitna ret ke pass samay hota hai, muthhi me.........:)
ReplyDeletekitna pyara bimb prayog karet ho neelima jee!! chha gaye aap!! apke kavitaon ka fan hoon!! bas yahin kahunga..........:)
GOD BLESS!!
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 22 - 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
ReplyDeleteकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
word verification hataane ke liye ...
dashboard > settings > comments > wahan par word verification ko NO click kar den ...
Neelima jee.......:)
ReplyDeleteaap bahut aage jaoge, bola tha maine!!
क्यूँ ख़त्म नहीं होता ये इंतज़ार,
ReplyDeleteअमावस की रात सा इंतज़ार,
सुनी राह पर पड़े मील के पत्थर सा इंतज़ार,
उफ़ ये इंतज़ार,
-वो सुबह कभी तो आएगी ,जो इंतजार खत्म करा जाएगी । अच्छी - सशक्त अभिव्यक्ति , बधाई ।
लिल्लाह!
ReplyDeleteक्या बात है!
ईश्वर करे जल्द ख़त्म हो आपका इंतज़ार!
आशीष
--
बैचलर पोहा!!!
आपकी सभी रचनाये बहुत अच्छी होती हैं और सीधी दिल से हो कर निकलती हुई दिल तक ही पहुँचती हैं.
ReplyDeleteकल गल्ती से तारीख गलत दे दी गयी ..कृपया क्षमा करें ...साप्ताहिक काव्य मंच पर आज आपकी रचना है
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/2010/09/17-284.html
रेत कब रुकी है ...समय भी मुट्ठी से रेत की तरह फिसल जाता है ...
ReplyDeleteमगर इंतज़ार ....
इतना लम्बा भी ना हो ये इंतज़ार ..!
कमाल की कशिश है आपके इंतजार में....... हर हाल में इंतजार
ReplyDeleteमुझे बहुत ही पसंद आयी आपकी पंक्तियाँ......
बहुत अच्छा किया है इंतज़ार :) और तस्वीर बहुत ही खूबसूरत है.
ReplyDeleteलीजिए हम तो आ गए । आपकी कविता में रेत की मानिंद मिले हुए हैं हम । आपकी मुठ्ठी में तभी ठहर पाएंगे जब आप रेत में से बाकी सब कंकड़ पत्थर हटा देंगी।
ReplyDeleteमेरे कहने का तात्पर्य है आपकी कविता नदी की तरह बहती है। पर आपको उसमें से कंकड़'पत्थर किनारे करने होंगे। संपादन की जरूरत है। और इस पहचान पत्र की अनिवार्यता को भी हटाइए।
neelu ji
ReplyDeletekavita ko baandhne ki bahut bhari jarurat mehsoos ho rahi hai, bahut lambi kavita ho gaihai, bhaavon mein thoda jadu jagayein.
good luck
उफ़ ये इंतज़ार,
ReplyDeleteक्यूँ करती हूँ मैं इंतज़ार,
अब किसका करती हूँ मैं इंतज़ार,
Bahut sudnar han apki rachnayain.. suvkamna mare ore se... bahut sundar...:)
क्यूंकि मैं रेत हूँ
ReplyDeleteऔर तुम समय
तुम मेरे लिए कब रुके हो
कभी नहीं और न कभी रुकोगे
इसलिए..........
बस ख़त्म हुआ अब इतंजार
wah bahut bhav purn aur hridaysparshi rachna...badhayi aapko
बहुत ही खूबसूरत रचना
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत रचना
ReplyDeleteबहुत उम्दा अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteउफ़ ये इंतज़ार,
क्यूँ करती हूँ मैं इंतज़ार,
अब किसका करती हूँ मैं इंतज़ार,
-क्या बात है!
intjaar wakai kabhi kahtam hi nahi hota .bahut badhiya likha hai aapne is ko ..bahut pasand aayi yah shukriya
ReplyDeleteअपनी अभिव्यक्ति को बेहतर शब्द दिए हैं आपने
ReplyDeleteबधाई
intiha ho gayi intjaar kii.........
ReplyDeleteye haqiqat hai ki tum na gujroge idhar se
tumne karne ko kaha intjar baithe hai..
bahut khoobsurat bhavabhivyakti....
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति, साधुवाद!
ReplyDeletenice poem..... your poem makes a clear picture in reader's mind. actually i think its the greatest achievement of any poet. so , accept my best compliments for it.
ReplyDeletevisit www.jksoniprayas.com.co.in also whenever you free..........
क्यूंकि ,
ReplyDeleteमैं सच मे रेत हूँ,
और तुम समय,
तुम मेरे लिए कब रुके हो?
कभी नहीं...
और न कभी रुकोगे,
मगर मेरा इंतज़ार कभी नहीं थका
बहुत खूब - लाजवाब
Bahut hi khoobsrat likha hai aapne. Atyant hi marm-sparshi. Bahut Bahut Badhaai.
ReplyDeletewow !!!!!!
ReplyDeletebahut khub ahsas dilaya aap ne
wonderful... excellent
ReplyDeletehum mai phool chaahe mujhe maslo ya kuchlo, Ya shaakhon se karo juda mujhe
ReplyDeleteMai to Har lamha biherne k baad bhi har gulaab ki pankhudi banke tumhe aur hawako mehkaati he jaaungi...
Bahut khub =surat Likha hai aapne inteazaar k upar
Waah
Waqt chaahe karle kitne bhi sitam muhpe;
Mai to tumhe yaad kar aankhon me tera roop sajaungi.
hum mai phool chaahe mujhe maslo ya kuchlo,
ReplyDeleteYa shaakhon se karo juda mujhe
Mai to Har lamha bikharne k baad bhi
har pal gulaab ki pankhudi banke
tumhe aur hawako mehkaati he jaaungi...
Bahut khubsurat Likha hai aapne intezaar k upar
Yaadon k safar me chal kar kabhi khud ko duba kar dekho,
Saath gujre Hasin Palon ko sanvaar kar dekho|
Zindagi Mehak kar behad haseen nazar aayegi 'rk',
Kabhi Hamari Baaten pe dhyaan laga kara kar dekho|RK
--
Khwaabon k gulistaan me maine yaadon ko sajaaya,
Mere Chehre pe uske chehra Ka rang Nikhar aaya|
Jab bhi Tanhaayi me ghul k reh gaya 'rk' aye dost,
Tab Tab Palkon pe ik khushi ka aansu ubhar k aaya|RK
hum mai phool chaahe mujhe maslo ya kuchlo,
ReplyDeleteYa shaakhon se karo juda mujhe
Mai to Har lamha bikharne k baad bhi
har pal gulaab ki pankhudi banke
tumhe aur hawako mehkaati he jaaungi...
Bahut khubsurat Likha hai aapne intezaar k upar
Yaadon k safar me chal kar kabhi khud ko duba kar dekho,
Saath gujre Hasin Palon ko sanvaar kar dekho|
Zindagi Mehak kar behad haseen nazar aayegi 'rk',
Kabhi Hamari Baaten pe dhyaan laga kara kar dekho|RK
--
Khwaabon k gulistaan me maine yaadon ko sajaaya,
Mere Chehre pe uske chehra Ka rang Nikhar aaya|
Jab bhi Tanhaayi me ghul k reh gaya 'rk' aye dost,
Tab Tab Palkon pe ik khushi ka aansu ubhar k aaya|RK
स्त्रियां इतनी समर्पित क्यों होती हैं...
ReplyDeleteइंतज़ार इतना प्रयोग हुआ कि लगता है काफ़ी देर तक मन में गूंजता रहेगा...
बेहतर...
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
ReplyDeletebahut bahut masoom sa intzaar hai bahut khoob
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति…………गज़ब का लेखन्।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत भाव लिये है ये कविता।
ReplyDeleteइसपर ससम्मान एक शेर प्रस्तुत है:
रेत मुट्ठी में बँधी इंतज़ार करती है,
और खुलने की घड़ी उससे प्यार करती है।
जबकि जानती हूँ ,
ReplyDeleteकी बस अब उतना ही समय रह गया है मेरे पास ,
जितना ,
हाथ से फिसलती हुए रेत के पास होता है,
मुठी मैं रहने का ,
Kamaal hai! kitna bhulakkad ho gaya huN maiN!? Aapka email padhkar yaad aaya ki maine aapse koi vaadaa kiya tha kisi comment ka !
Maine comment kar diya kya !?
ya fir bhul gaya !!!!???
बहुत ही खूबसूरत रचना है... सुंदर भावाभिव्यक्ति .... बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर.... अबसे आता रहूँगा...
ReplyDeleteरचना अच्छी लगी आपकी..पर और जयादा अच्छी हो सकती थी अगर कुछ शब्दों कि पुनरावृति न कि गए एहोती और इसकी लम्बाई को कम करने कि कोशिह्स कि गयी होती. तब शायद और जयादा निखर होता इस इंतज़ार में.
ReplyDeleteआभार
सखी
बहुत खुब
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ! बस मात्राओं की गलतियां अखर रही हैं
ReplyDeleteसच है समय किसी के लिए नही रुकता ... पर फिर भी इंतेज़ार का मज़ा कुछ अलग ही है ...
ReplyDeletenamaste
ReplyDeletesunder abhivyakti hai aap ki .
badhai
sadhuwad !
wah bahut bhav purn aur hridaysparshi rachna...badhayi aapko
ReplyDeleteneelam ji behad khoobsurat kavita hai
ReplyDeleteour kavitaon ka hame bhi hai injzar.......
Bahut achha likha hai aapne.
ReplyDeletebilkul Dil ko chhu lete hai Aapke shabd.
Aapse bahut kuch sikhna hai.
सुन्दर कविता। बधाई !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! बधाई!
ReplyDeleteapki kavita zehan me bar bar kaundhti hai, sunder rachna ke liye sadhuvad.
ReplyDeleteaap sabhi ki main tahe dil se shukra guzaar hoon. aahsa karti hoon aage bhi aap aise hi mera maarg darshan karte rahenge..meri housla afzaai ke liye bahut bahut shukriya.
ReplyDeleteआपकी कविता पढ मित्र विनय कुमार की पंक्तियां याद आयीं - तेरे जाते ही तेरा इंतजार आता है, राहे इश्क में तनहाइयां नहीं होतीं;;;
ReplyDeleteati sundar..
ReplyDeleteati sundar
लेकिन...
ReplyDeleteमैं आज भी रुकी हुई हूँ,
सूनी राहों मे तुम्हारी यादों को हमसफ़र बना कर ,
मैं आज भी कर रही हूँ,
तुम्हारा इंतज़ार............
bahut achchi tarah se bhaawnaon ko shabdon me piroya hai... saabhar...
रचना का विषय उत्तम है, अभिव्यक्ति सटीक है किन्तु शब्दों की अशुद्धता रचना के पठन को दुरूह बना रही है। कृपया शुद्ध कर लें। उदाहरणतया- जायुंगी,पायुंगी,क्युंकी आदि...!
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