दिन बिताये तुम्हारे इंतज़ार मे,
काट ली रातें, मैंने आँखों मे,
ना तुम आये लौट कर कभी ,
ना कभी खवाब आये रातों मे,
दिन भर मुस्कुराई तुम्हारा ख़याल करके,
और तुम्हे याद कर अश्क बहाए रातों मे,
तुम मिलते, तो गिला करती तुमसे,
खुद से शिकवे किये मैंने रातों मे,
तुमसे मिलना हुआ बस ख्यालों मे,
और यूँही मिलती रही जज्बातों से ,
आस अधूरी ही रही मिलन,
सावन की बरसातों मे,
वो कैसे जानता मेरे दिल की बात ,
जब कोई बात हुए ही नहीं अल्फाज़ो मे,
चाँद रोज निकलता है चाँदनी लेकर
और मैं सुलग रही हूँ रातों मे,
धरती मिलती है क्या कभी गगन से,
या फिर यूँही सफ़र किये जा रही हूँ कई सालों से ....
acchee prastuti.......
ReplyDeleteintzar kee ghadiya khatm ho isee shubhkamna ke sath.
bahut pyaare rachna... intzaar ko bhaut acchhe se prastut kiya hai aapne... bahut khoob...
ReplyDeleteचाँद रोज निकलता है चाँदनी लेकर
ReplyDeleteऔर मैं सुलग रही हूँ रातों मे,
धरती मिलती है क्या कभी गगन से,
या फिर यूँही सफ़र किये जा रही हूँ कई सालों से ....
ek baar fir se behatareen.......
premika ke intzaar ko kitne pyare shabdo me aapne sajaya!!
badhai sweekaren!!
aapke sateek shabdo ko choose karna ka tareeka mujhe behad bhaya!!
इस शानदार रचना पर बधाई ....जैसे मैंने पहले भी कहा है आप कुछ उचाईयों को छूती हैं यही मुझे पसंद आता है ....बहुत सुन्दर भाव भर दिए हैं आपने ....और तस्वीर के चयन में आपकी पसंद की दाद देता हूँ |
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबेहतरीन , पर इन अहसासों को यदि लफ्ज़ न मिला तो न सही आपके खूबसूरत शब्द मिले ये भी क्या कम है !!
ReplyDeleteकोई लाइन याद आ रही है -
सो न सका , कल याद तुम्हारी आई सारी रात
और पास ही कहीं शहनाईयां बजती रही सारी रात !
तुम न आये
ReplyDeleteलो फिर आई
जादूगरनी रात!
उमड़ रहा जो मेरे मन मे
नहीं तुम्हारे संवेदन मे,
फिर भी बदली घिर घिर आई
नयन लिए बरसात!!
तुम न आये
लो फिर आई जादूगरनी रात!
कैसे जोहें बात तुम्हारी
भरी हुयी आँखें बेचारी,
सुधियों मे रह रह कर आयीं
एक-एक हर बात!
तुम न आये
लो फिर आई जादूगरनी रात!
देख रतजगा रोज-रोज का
हुआ संकुचित चाँद गगन का,
मगर चाँदनी लुटा न पायी
स्वप्नों की सौगात!
तुम न आये
लो फिर आई जादूगरनी रात!
*amit anand
दिल के जज्बातों को लफ्ज़ दिए हैं आपने ... बबुत ही अच्छी नज़्म ....
ReplyDeleteशानदार रचना पर बधाई बहुत सुन्दर भाव
ReplyDeleteनीलम जी आप की रचना मनभावन लगी| वैसे भी अनुभूतियों की सफलतम अभिव्यक्ति ज़्यादातर नारी शक्ति के हिस्से ही आती है और हम पुरुषों को इस सच को स्वीकार करने में आपत्ति नहीं होनी चाहिए| आशा है आगे भी आप को पढ़ने के अवसर मिलते रहेंगे| इस रचना के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें|
ReplyDeleteशानदार रचना
ReplyDeleteमैं और मेरा समय रहा बस, बीत गयी इन बातों में।
ReplyDeleteवो कैसे जानता मेरे दिल की बात ,
ReplyDeleteजब कोई बात हुए ही नहीं अल्फाज़ो मे,
दिल की बात बिन कहे भी जानी जाती है
बहुत सुन्दर भावमय रचना बधाई।
तुम मिलते, तो गिला करती तुमसे,
ReplyDeleteखुद से शिकवे किये मैंने रातों मे,
तुमसे मिलना हुआ बस ख्यालों मे....
Lovely creation !
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वस्ल की रात, तेरा इंतिज़ार भारी है
ReplyDeleteतुम्हारी ओर मगर ये सफ़र भी जारी है।
इस दिलकश और बेहतरीन रचना के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें...
ReplyDeleteनीरज
बहुत उम्दा रचना.
ReplyDeleteचाँद रोज निकलता है चाँदनी लेकर
ReplyDeleteऔर मैं सुलग रही हूँ रातों मे,
धरती मिलती है क्या कभी गगन से,
या फिर यूँही सफ़र किये जा रही हूँ कई सालों से ....
ek ajeeb si ghutan hai isme
आपकी कविता सीधी दिल से निकलकर दिल में आती है .. बहुत संवेदना है ..बहुत सुन्दर
ReplyDeletebahut sunder rachna hai, achha laga aapko padhna.
ReplyDeleteshubhkamnayen
bahut sunder ....aapke jazbat aapke dil se nikal kar hamare dil tak pahunch gaye.....
ReplyDeletebadhiya hai.dipawali ki shubhakamanayen.
ReplyDeleteBahut Khub.
ReplyDelete"जब कोई बात हुए ही नहीं अल्फाज़ो मे"
ReplyDeleteहुए को हुई कर लें, सुन्दर रचना है लेकिन और भी सुन्दर हो सकती है!
दीदी सब कुछ तो रात मे करते हो तो दिन मे सोते हो क्या
ReplyDelete(माफ करना मजाक करने की आदत है )
तुमसे मिलना हुआ बस ख्यालों मे,
और यूँही मिलती रही जज्बातों से ,
बहुत सुन्दर अहसास भरी रचना है
चाँद रोज निकलता है चाँदनी लेकर लेकिन अमावस्या को उसकी छुट्टी रहती है, अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteआदरणीय नीलम जी
ReplyDeleteनमस्कार .....
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
खुद से शिकवे किये मैंने रातों मे,
तुमसे मिलना हुआ बस ख्यालों मे,
भावनात्मक प्रस्तुति....पर इस हालत में भी आनंद आता है
आपके ब्लॉग तक पहुच कर बहुत अच्छा लगा ....आपके भावों को अभिव्यक्त करने का अंदाज बहुत निराला है ...हार्दिक शुभकामनायें
ved-awesome neelu.:).
ReplyDeleteदिन बिताये तुम्हारे इंतज़ार मे,
ReplyDeleteकाट ली रातें, मैंने आँखों मे,
ना तुम आये लौट कर कभी ,
ना कभी खवाब आये रातों मे,
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Awesome... asusual...... :) aapki her ghajal,poem,sher hume bahut acheee lagte.. hai.... aise hi likhti rahiyegaaa....
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achaa lagta hai........ aapki ghajal,poems parnaa....
यूँही सफ़र किये जा रही हूँ कई सालों से ...satya to yahi rah jata hai
ReplyDeleteसुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति....
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें
चाँद रोज निकलता है चाँदनी लेकर
ReplyDeleteऔर मैं सुलग रही हूँ रातों मे,
धरती मिलती है क्या कभी गगन से,
या फिर यूँही सफ़र किये जा रही हूँ कई सालों से ....
बहुत ही बेहतरीन रचना...
क्या कहने साहब ।
ReplyDeleteजबाब नहीं निसंदेह ।
यह एक प्रसंशनीय प्रस्तुति है ।
धन्यवाद ।
satguru-satykikhoj.blogspot.com
देखिए, नया मौसम आया, नया सवेरा हुआ है.
ReplyDeleteख़याल सुंदर बोल मधुर हैं नीलम तेरे
ReplyDeleteदुख भूला 'अनवर' सुख पाया तेरी बातों में
@ निर्मला जी से सहमत ।
Wah bahut khoob...............
ReplyDeleteदिन भर मुस्कुराई तुम्हारा ख़याल करके,
ReplyDeleteऔर तुम्हे याद कर अश्क बहाए रातों मे,
behad hi khubsurat. mere blog ko follow karne ke liye mai tahe dil se aapka shukriya ada karta hu.
kya kahun , kuch kahne ke liye ab shabd nahi hai hai , i am speechless.
ReplyDeletekuch panktiyon ne to seedhe dil par hi asar kiya hai ..
vijay
चाँद रोज निकलता है चाँदनी लेकर
ReplyDeleteऔर मैं सुलग रही हूँ रातों मे,
वाह विरोधाभासी अलन्कार सुन्दर अभिव्यक्ति
एक अजनबी से मुझे इतना प्यार क्यों है, इनकार करने पर भी, चाहत का इक़रार क्यों है, उसे पाना नहीं मेरी तक़दीर शायद, फिर भी हर मोड़ पर उसी का इंतज़ार क्यों है।
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