उस सुंदर सी मुस्कान के पीछे
आँखों से मोती झरते थे!
आँखों से मोती झरते थे!
भीगे भीगे कुछ सपने थे,
कुछ टूटे ,कुछ छूटे अपने थे!
उस सुंदर सी मुस्कान के पीछे,
आँखों से मोती झरते थे!
कुछ पिघले पिघले पल अपने थे,
कुछ लम्हे भी तो कल अपने थे!
कुछ लम्हे भी तो कल अपने थे!
उस सुंदर सी मुस्कान के पीछे ,
आँखों से मोती झरते थे!
आँखों से मोती झरते थे!
राहों मे यूँही चलते चलते,
मजिल से पहले वो हमसे रूठ चुके थे!
उस सुंदर सी मुस्कान के पीछे ,
आँखों से मोती झरते थे!
तन उसका भी गीला था, मन मेरा भी भीगा था,
आँखों की बरसात के चलते!
तन उसका भी गीला था, मन मेरा भी भीगा था,
ReplyDeleteआँखों की बरसात के चलते!
बेहतरीन रचना...बधाई
नीरज
बेहतरीन रचना...बधाई
ReplyDeleteमोती झरते आँखों में मुस्कान आप ही समेट सकते हो शब्दों में...है न...:) और फिर इन मुस्कुराते अंशुओं के साथ आपने सपने भी देख डाले..:)
ReplyDeleteबहुत खूब..........
कम शब्दों में अधिक कहने की क्षमता. ......... सुन्दर रचना.......... आभार.
ReplyDeleteसमय मिले तो यह भी देखें और तदनुसार मार्गदर्शन/अनुसरण करें. http;//baramasa98.blogspot.com
तन उसका भी गीला था, मन मेरा भी भीगा था,
ReplyDeleteआँखों की बरसात के चलते!
main bhi bheeg gai un aankhon ki barish me
उस सुंदर सी मुस्कान के पीछे
ReplyDeleteमोती बेशक झरते थे
वो दूर गया मजबूर गया
दिल में अरमान पर मचलते थे
बारिशें छत पे खुली जगहों पे होती हैं मगर,
ReplyDeleteग़म वो सावन है जो इन कमरों के अंदर बरसे!
.
बहुत अच्छी और कोमलता लिए भावनात्मक कविता!!
कम शब्दों में अधिक कहने की क्षमता. ..
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति के पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ !"
nice...loved it....keep it up...
ReplyDeleteKritz..thanx dear..God bless u.
ReplyDeleteअति सुन्दर...................
ReplyDeleteभीगे भीगे कुछ सपने थे,
ReplyDeleteकुछ टूटे ,कुछ छूटे अपने थे!
बहुत अच्छे भाव ...
उस सुंदर सी मुस्कान के पीछे ,
ReplyDeleteआँखों से मोती झरते थे!
राहों मे यूँही चलते चलते,
मजिल से पहले वो हमसे रूठ चुके थे!
आदरणीय नीलम जी
आपकी कविता की हर एक पंक्ति दिल पर असर कर गयी ....बहुत संजीदा तरीके से मन के भावों को अभिव्यक्त किया है आपने ..इतनी बढ़िया अभिव्यक्ति कि क्या कहने ..जो पंक्तियाँ मैंने यहाँ उठाई हैं इनका जबाब नहीं ..इतनी भावपूर्ण कविता के लिए आपका तहे दिल से आभार ..शुक्रिया
उस सुंदर सी मुस्कान के पीछे ,
ReplyDeleteआँखों से मोती झरते थे!
अंतर्मन के सच्चे भाव... मन को भिगोती रचना
Shukriya veena ji.
ReplyDeleteVeena ji ne kaha.सुंदर रचना..
http://veenakesur.blogspot.com/
सादर
वीना
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ReplyDeleteभीगे भीगे कुछ सपने थे,
ReplyDeleteकुछ टूटे ,कुछ छूटे अपने थे!//
a poetic expression...
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
ReplyDeletesundar rachna .
ReplyDeletebadhai!
Man ke sundar ahasaason ka sundar shabd chiltra.
ReplyDeleteतन उसका भी गीला था, मन मेरा भी भीगा था,
ReplyDeleteआँखों की बरसात के चलते!
बहुत संवेदनशील भावपूर्ण प्रस्तुति..
bahut bhavpurna rachna.. badhai...!
ReplyDeleteकाव्य में ,,,
ReplyDeleteशब्द - शब्द में
मुस्कान का जादू
अपने होने का अहसास दिला रहा है .
@..Snjay ji, @Babban ji, @ Surendra ji, @ Gyaanchand ji, @ Kailash ji, @ aseem ji, @ Danish ji..aap sabhi ki main tahe dil se abhaari hon ki aapne apna kimti samay mujhe diya..bahut bahut shukriya aap sabhi ka.
ReplyDeleteउस सुंदर सी मुस्कान के पीछे ,
ReplyDeleteआँखों से मोती झरते थे!
bahut achchi lagi.
कुछ पिघले पिघले पल अपने थे,
ReplyDeleteकुछ लम्हे भी तो कल अपने थे!
बहुत ही सुंदर भाव हैं . आप की कलम को सलाम.
A smile tells hundred things. Nice one
ReplyDeleteराहों मे यूँही चलते चलते,
ReplyDeleteमजिल से पहले वो हमसे रूठ चुके थे
.
achchee gazal
तन उसका भी गीला था, मन मेरा भी भीगा था,
ReplyDeleteआँखों की बरसात के चलते!
बेहतरीन
तन उसका भी गीला था, मन मेरा भी भीगा था,
ReplyDeleteआँखों की बरसात के चलते!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
एहसासों को समेटे सुन्दर रचना !
ReplyDeletesundar aur sahityik rachna
ReplyDeletebaanch kar achha laga
badhaai !
कुछ पिघले पिघले पल अपने थे,
ReplyDeleteकुछ लम्हे भी तो कल अपने थे!
*
- द्वंद्वात्मक भावनाओं को व्यक्त करने का सुन्दर प्रयत्न !
बेहतरीन रचना...वाह!!!
ReplyDeleteसुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteकुछ पिघले पिघले पल अपने थे,
ReplyDeleteकुछ लम्हे भी तो कल अपने थे!
samvedna से bheegi huyi .... ehsaas की duniya mein le jaati ... khwaabon ko jagaati ....
Behatreen rachna है .
भीगे भीगे कुछ सपने थे,
ReplyDeleteकुछ टूटे ,कुछ छूटे अपने थे!
उस सुंदर सी मुस्कान के पीछे,
आँखों से मोती झरते थे!
वाह, क्या बात
बहुत ही सुन्दर रचना
बहुत पसंद आई आपकी कविता
बधाई
आभार
अपनी टिपण्णी दें...:)
ReplyDeleteमुझे इसकी जरुरत है...
आपके टिप्पणी मांगने के अंदाज में बड़ी ही साफगोई रही है। सारे ब्लॉगर कितने ही शब्दों में लपेट कर यही बात कहते हैं। कोई भी खुल्लमखुल्ला सामने नहीं आता। सच को स्वीकारने की हिम्मत के लिये मुस्कान आप बधाई की पात्र हैं।
रही कविता की बात तो मुझे लगता है यह एक भाव प्रवाह था और इसे कागज पर बहने में बहुत ही कम समय लगा होगा। लोग तुक मिलाने, भावों को दुरूहतम करने और जाने किस असंभव सी अभिव्यक्ित को परोसने में घंटों लगाते देखे हैं, उस के मुकाबले यह सरल अभिव्यक्ति है।
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ReplyDeleteउस सुन्दर सी मुस्कान के पीछे कितने आंसूं झरते थे ....
ReplyDeleteमुस्कुराती आँखों में भी आंसू होते है , कितने लोग जानते हैं !
भीगा दिया है कविता ने !
कोमल भावुक भावाभिव्यक्ति...
ReplyDeleteमेल कर सूचना देने और एक सुन्दर रचना पढने का अवसर देने के लिए आभार...
मन भीग गया। कुछ कहने का मन नहीं, बस ये शे’र
ReplyDeleteआंखे बरस रही हैं बरसात कैसे कहूँ
तेरी वजह से दिन को रात कैसे कहूँ
जो कुछ भी हो रहा है शामिल उसमें तू भी
मैं सिर्फ इन को हालात कैसे कहूँ ।
Kahti ho ki...
ReplyDeletemujhe aapki tippani ki zarrorat hai.
Sainny ji to chale gaye
apna password dekar...
Unhen phone par tumahari baat sunaai
to bole ki yae bhej do :
"Kabhi aah dil se nikal gai
Kabhi ashk aankh se dhal gaye...
Ye tumahare gam ke charaag hain...
Kabhi bujh gaye kabhi jal gaye..."
Neelu!
Bahut sundar hai tumahara sansaar!
Ham sabke Pyaar!!
Aur haan ...
Yahaan bhi aana yaar :
http://snowaborno.blogspot.com
Sasnesh,
Apara
कुछ पिघले पिघले पल अपने थे,
ReplyDeleteकुछ लम्हे भी तो कल अपने थे!
एक अधूरी चाहत
यह रातें यह मौसम यह सपना सुहाना
उन्हें ना भूलाना भूलना हमें भूल जाना
बधाई इस सुन्दर भावाभिव्यक्ति के लिये ।
ReplyDeleteसुंदर मुस्कान के पीछे आपने झाँका, हमने देखा...
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति
बहुत ही सुन्दर और कम शब्दों में दिल को छू लेने वाली रचना. इतना ही कहूँगा की आपने अपने मन में उठने वाले भावो को शब्दों में पिरो कर जो कविता लिखी है उसके लिए आप बधाई की पात्र है. मेरी शुभकामनाये स्वीकार करे. फर्क मात्र इतना है की मै कुछ ऐसे ही भावो से गुफ्तगू करता हूँ. आपका भी मेरी गुफ्तगू में स्वागत है.
ReplyDeletewww.gooftgu.blogspot.com
sundar abhivayakti
ReplyDeleteजो कुछ अपना था वो कल था...''आंसू'' हो या फिर ''हँसी''..अब तो आंसू भी भाप बन के उड़ गए एक शुष्क नज़र छोड़ गए..और हँसी...वो तो चाशनी में पक-पक कर कड़ी हो गयी..जिंदगी की आंच कुछ ज्यादा ही तेज़ रही शायद ..पर आपकी कविता में..वो पहले सी भीगी आँखों की नम मुस्कान..एक सीधी सच्चाई बयान कर गयी..सुन्दर कविता केलिए बधाई ..नहीं मेरी टिप्पड़ी की आपको कोई आवश्यकता नहीं..आप गुनी जनों से घिरी हैं..पर कुछ कहने से खुद को रोक नहीं पाई..
ReplyDeleteउस सुंदर सी मुस्कान के पीछे
ReplyDeleteआँखों से मोती झरते थे!
भीगे भीगे कुछ सपने थे,
कुछ टूटे ,कुछ छूटे अपने थे!
बहुत अच्छी रचना...दिल को छूती हुई.
नीलमजी
ReplyDeleteसुंदर सी मुस्कान को सार्थक कर दिया आपकी लेखनी ने
आपको बधाई
wesai muje lagta hai aap ko aap ke es Blog par already etne comments mil chuke hain kuch khene ko baki he nahi raha.... kintu fir bhi aapne muje mail kiya usske liye many thanks....muje aapka poora Blog bahut accha laga aur sab se zyada muje wo painting bahut acchi lagi jo aapne lagaye hai...bahut he khubsuart painting ka istemaal kiya hai aapne apne Blog ke liye ...ese zayada aur kya kahun baki sabhi ne sabhi kuch kheh hee diya hai...ho sake tho kabhi aap bhi mere Blog par aiiyegaa aur padhkar apnee mahtvpoorn comments se muje avagat karviyegaa...best wishes and keep writing...http://mhare-anubhav.blogspot.com/
ReplyDeleteकुछ पिघले पिघले पल अपने थे,
ReplyDeleteकुछ लम्हे भी तो कल अपने थे!
उस सुंदर सी मुस्कान के पीछे ,
आँखों से मोती झरते थे!
बहुत सुन्दर गीत है। मुस्कान के पीछे हमेशा आंम्सू होते हैं । तभी तो जोर से हंसने पर बह जाते हैं । अच्छी लगी रचना बधाई।
Main aaap sabki tahe dil se abhaari hoon aap sabhi ne apna keemti waqt meri ghazal ko padhne ke liye nikala..shukriya aap sabhi ka.
ReplyDeletethanx lot.
Rajey shah ji..
ReplyDeletebahut bahut abhaar.
ji sach klaha aapne baahut kam samy laga tha mujhe ye likhne main..mann ke bhaavon ko seedhe aur saral shabdon main vyakt karti hoon.shayad isliye waqt kam lagta hai...ise likhne main 10 mnt se bhi kam ka samay laga.
aap meri ek aur rachna hai jise maine ..chat par baat karte karte likh diya tha...uska link main yahan de rahi hoon...
http://neelamkashaas.blogspot.com/2010/07/blog-post_22.
Pallavi ji...
ReplyDeletecomment to mujhe sach main bahut mile..magar tippaniyaan thodi kam hai..agar wo bhi mil jaayen to kuchh aur achha seekh paayun main...[:)]
aap sabhi ka bahut bahut shukriya.
मुस्कान लब्ज को बयां करने वाली बहुत ही अच्छी रचना है आपकी
ReplyDeleteहमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
मालीगांव
साया
लक्ष्य
हमारे नये एगरीकेटर में आप अपने ब्लाग् को नीचे के लिंको द्वारा जोड़ सकते है।
अपने ब्लाग् पर लोगों लगाये यहां से
अपने ब्लाग् को जोड़े यहां से
bahut sundar abhivyakti. neelam jee jo bhav man men umadate hain aur vah seedhe pashton par jate hain. na unamen kuchh jodane ki jaroorat hoti hai aur na hi kisi sudhar kee. aisi hi rachna seedhe man ko chhoo leti hain.
ReplyDeletebhtrin rchnaa mubaark ho. akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteउस सुंदर सी मुस्कान के पीछे,
ReplyDeleteआँखों से मोती झरते थे!
कुछ पिघले पिघले पल अपने थे,
कुछ लम्हे भी तो कल अपने थे!
बहुत ख़ूब!
अक्सर मुस्कान के पीछे मोती होते हैं ,
लेकिन उन भावनाओं को काव्य में बहुत ख़ूबसूरती से ढाला है आप ने
भीगे भीगे कुछ सपने थे,
कुछ टूटे ,कुछ छूटे अपने थे!
वाह !
उस सुंदर सी मुस्कान के पीछे ,
ReplyDeleteआँखों से मोती झरते थे!
बहुत भावपूर्ण रचना.
उस सुंदर सी मुस्कान के पीछे ,
ReplyDeleteआँखों से मोती झरते थे!
बहुत सुंदर भावों से पूर्ण रचना
achchhi kavita hai jisne samvednaon ki sunder abhivyakti hui hai. badhi.
ReplyDeleteतन उसका भी गीला था, मन मेरा भी भीगा था,
ReplyDeleteआँखों की बरसात के चलते!
aapki kavita ko salaam, aapke shabdo ne jaise jaadu kar diya hai
badhayi sweekar kare..
vijay
राहों मे यूँही चलते चलते,
ReplyDeleteमजिल से पहले वो हमसे रूठ चुके थे!
उस सुंदर सी मुस्कान के पीछे ,
आँखों से मोती झरते थे!
..sundar komal bhawanon ko bakhubi piroya hai aapne.. bahut sudar geet ..dil se likha hua..badhai
अच्छी कविता......गीत सा है..गुनगुना रहा हूं....
ReplyDeleteaansu arr muskan .ati sundar
ReplyDeleteChitron ka janam shabdon ki kamzoriyan door karne k liye hua. Aap chitron ko sashakta shabd de rahin hain.
ReplyDeleteBadhai.
भीगे भीगे कुछ सपने थे,
ReplyDeleteकुछ टूटे ,कुछ छूटे अपने थे!
बहुत सुन्दर रचना । बधाई स्वीकारे ।
बहुत सुन्दर रचना । बधाई स्वीकारे ......
ReplyDeletewah Kya baat hai thanks for this post....kept up
ReplyDeleteआदरणीय नीलम जी
ReplyDeleteचलते -चलते पर देखिये
ब्लॉगरीय षटकर्म ...आपकी प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण है ...शुक्रिया
उस सुंदर सी मुस्कान के पीछे
ReplyDeleteआँखों से मोती झरते थे!
भीगे भीगे कुछ सपने थे,
कुछ टूटे ,कुछ छूटे अपने थे!
खूबसूरत भीगी भीगी सी रचना .....
Surendra ji, @Akhtar ji @ Rekha ji, Ismat Ji aap sabhi ka bahut bahut shukriya. Aage bhi aap meri housla afzai karte rahiyega .
ReplyDeleteAbhaar.
Bhushan ji <Veena ji < Ramesh ji ,Vijay Ji, kavita ji..bahut bahut abhaar.
ReplyDeleteतन उसका भी गीला था, मन मेरा भी भीगा था,
ReplyDeleteआँखों की बरसात के चलते!
उस सुंदर सी मुस्कान के पीछे ,
आँखों से मोती झरते थे!
sundar ati sundar
khubsurat ehsas
ReplyDeletehttp://shayaridays.blogspot.com
bahut sundar....apratim rachnaye...keep it up neelu.......
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