झूठ........
हाँ झूठ .
फिर से बोला एक और झूठ
आज मैं ने
"ख़ुद" से खुद ही,
खुद को समझाने की खातिर !
नहीं हारी मैं अब तक,
परिस्तिथियाँ कैसी भी हों
कैसा भी हो मौसम का मिज़ाज ,
बहुत "मज़बूत" हूँ मैं ,
एक और झूठ बोला मैं ने खुद से ------!
आहा !!!
कमाल हो गया ....
हो गया नई ऊर्जा का संचार
निखर - निखर संवर-संवर सी गई " मैं "
एक नया हौसला एक नई उमंग,
शुरू हो गयी फिर से एक नई जंग,
खुद से खुद को जुदा करने के लिए।
हार - जीत..
जीत - हार...
ज़िंदगी को देनी है नई रफ़्तार...
मगर खुद का" विश्वास" बढ़ाने के लिए ,
बस एक "आखिरी" झूठ ,
सबसे बड़ा झूठ ,
"उम्मीद " …
इसके बाद .....
किसी और "झूठ "की कोई जरुरत नहीं ,
इसी के सहारे तो बीत जाती है ,
सारी जिंदगी ……!!!
_[नीलम]_
मगर खुद का" विश्वास" बढ़ाने के लिए ,
ReplyDeleteबस एक "आखिरी" झूठ ,
सबसे बड़ा झूठ ,
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है