धूप....
कहां है धूप मेरी
मुठियों मे
सिर्फ अहसास की गर्मी ही तो
है इन हथेलियों में
जिन्हें कभी छुआ था तुमने
दिसम्बर की जमा
देने वाली सर्दी में
तुम्हारे नरम हाथों की
गरम छुअन लिए
बैठा हूँ मेआज तलक
और तुम कहती हो
मेरी मुट्ठीयों में
गुनगुनी धूप बंद है
काश !
तुम अपनी नरम हथेलियां
एक बार फिर मेरी झुलस रही
हथेलियों पर रख पाती ...
तब जान जाती कि
ये गुनगुनी धूप नहीं ,
तुम्हारे नरम हाथों का
गुनगुना अहसास है .... ( नीलम )
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