Ahsaas
Ek koshish khud ke ahsaason se aapke ahsaason ko shabdon ke jariye chhoo lene ki...
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Monday, April 23, 2018
Tuesday, April 17, 2018
एक अरसा पहले लिखी थी ये रचना ,मगर स्थिति आज भी जस की तस ही है ।😞😟😢😡 भ्रूण हत्या क्यूँ नहीं की माँ .. क्यूँ ले आयीं मुझे इन् भूखे भेडिओं और दरिंदों की दुनिया में... जानती हूँ माँ तुम भी आज यही सोच रही हो... क्यूंकि बचा नहीं पायीं मुझे इन् दरिंदों से तब यही ख्याल तो आया होगा ना.. काश ! जन्म से पहले ही मार दिया होता तब आज गुडिया और दामिनी को हज़ार मौत नहीं मरना पड़ता .. नहीं मरती लाखों मौत कोई माँ नहीं टूटता कोई पिता भाई आज खुद को असहाय महसूस नहीं करता ... हर दिन मोमबतियां यूँही जलती और पिघलती रहेंगी माँ रह जाएगा बस मौम जिसमे बाती नहीं होगी.. नहीं जल पाएगी वो मोमबतियां जो जलीं, पिघली और बुझ गयीं दामिनी के समय भी तो जाने कितनी मोमबतियां जलाई गयीं थीं.. हम सभी ने देखा था टीवी पर बिखरी पड़ी थी मोमबतियां यहाँ वहां.. और देखी थी सवेंदानाएं भी सभी की आँखों में मगर क्या सवेंदनायो का यही रूप है... क्या होगा ऐसी सवेंदानायों का जो दिखती तो हैं मगर कुछ पल के लिए सवेंदानाएं जलती हैं मोमबतियां बनकर और बुझ जाती है कुछ पल सुनसान सडको को रोशन कर और उस संवेदनाओं की भीड़ में लाखों माएं शायद यही सोचती हैं... भ्रूण हत्या .. कौन रोकेगा... क्यूँ रोकेगा... क्यूंकि हम असक्षम है अपनी बेटिओं की रक्षा करने में 😢😢😢 ( मुझे भ्रूण हत्या का एक कारण ये भी नज़र आता है, क्यूंकि हमारे समाज में हम अपनी बेटिओं को अपने घर में भी सुरक्षित नहीं पाते । #नीलम😟😞
Friday, June 30, 2017
रेड एंड वाइट...
धूमकेतु सी बन मैं
जब बहने लगती हूँ
तुम्हारी कविताओं में
तब
तुम भी ध्रुव तारे सा बन विचरने लगते हो
मेरे साथ
मेरी कवितायों में
ऐसे
जैसे मुझे तुम पाते हो अपने
रेड एंड वाइट के धुयें से बने
गोल गोल छ्लों में
- नीलम -
तुम्हारे लफ्ज़ ...
तुम्हारे सारे लफ्ज पुरुष ही तो हैं जो शोर करते हैं भीड में
और मेरे लफ्ज स्त्री जो खामोशी में भी सुनते है पसरा हुआ सन्नाटा .
...नीलम..
छुप जाने का हुनर ..
खूब आता है तुम्हे मुझे देख के छुप जाने का हुनर
हवा के झोंके सा मगर छू के फ़िर गुजरते क्यों हो
- - नीलम- - -
Friday, November 18, 2016
पुरनम रौशनी
पुरनम रौशनी रही तेरे ख्यालों की शब भर
सुबह तक हमने खुद को तेरी यादों के अँधेरे से निकलने ना दिया.
*नीलम *
खामोश लब
तेरे खामोश लबों की बातें
आँखों से समझ लेता हूँ
बडी अजीब बात है
धड़कने मगर मेरे दिल की
दिल उसका धड़काती
नहीं हैं
*नीलम *
Saturday, October 8, 2016
ख्यालों में खोना
ख्यालों मै खोना
कुछ खवाब बंज़र जमीन पर बोना
कैसा होता है न
ऐसा, जैसे खुद ही मै खो जाना
ख्यालों मै ही सही
पर तेरा हो जाना
रह ताकना उन राहों की
जहाँ कोई लौट कर नहीं आता
उसी रह पर
कैसा लगता है
मील का पत्थर हो जाना
तेरा जाना फिर भी
उम्मीद दे जाता है
तेरा, मेरा हो जाना.
****नीलम***
Wednesday, October 5, 2016
घडियां इंतज़ार की
जानती हूँ
तुम आज भी कर रहे हो
इंतज़ार
और जी रहे हो
उम्मीद
और उम्मीदें इन्तजार को आसान बना देती हैं
और मैं ...
मैं जी रही हूँ
घडियां इंतज़ार की
तुम्हे खेल लगता है ना मेरा यूँ अचानक चले जाना
मगर
कहाँ जा पाई मैं तुम्हे छोड़ कर
मेरा जिस्म ही तो गया तुमसे दूर
मेरी रूह तो वहीं रह गई
तुम्हारे पास
जिसे तुम देखते ही नहीं
शायद तुम्हे मैं ज़िस्म के
साथ ही चाहिये थी
इसिलिये मेरी तुम में भटकती रूह छोड
तुम तलाश रहे हो
मेरा तुम बिन
बेजान जिस्म
नीलम
मैं लेखिका नहीं
मैं लेखिका नहीँ हूँ
मगर फ़िर भी लिखती हूँ कविता
कुछ यादें
कुछ सपने
और कुछ अहसास
जो हैं मेरे लिये बहुत खास
मेरे लिये मेरी कवितायें हैं
ओस की बूँदों के समान
खिड़की पर बैठ मेरा इंतजार करता हुआ चाँद है मेरी कविता
सूखे पत्ते ,नम सम्वेदनाएँ
और
मील के पत्थर है मेरी कविता
थोड़ी तन्हाई - थोड़ी रुस्वाई
थोड़ी मोहब्बत
और थोड़ा सा इनकार है मेरी कविता
मैं लेखिका तॊ नहीँ हूँ
मगर
फ़िर भी लिखती हूँ कविता - - - नीलम - - - -
आदत
तुम्हारी कहानी
के पहले शब्द से आखिरी शब्द तक
होती है सिर्फ तुम्हारी कविता
जो करती है तुम्हारी ही बात
और फ़िर पूर्णविराम के बाद भी कोसों दूर तक
दिखता हूँ तुम्हे सिर्फ मैं
और मुझे दिखती हो तुम
मेरी ज़िंदगी के सुबह से शाम और शाम से रात तक
और महसूस करता हूँ
सिर्फ तुम्हे और तुम्हारी ज़रूरत
मेरी धड़कनों को धड़कने के लिये
आदत खुद को लिखने को नहीं
आदत तुम्हे जीने को कहते हैं
समझीं तुम !!!
*नीलम*
सदी
हाँ याद है मुझे
उस मोड से इस मोड तक
की वो सदी
जिसे तुम साथ ले गई
और जी रही हो
और मैं ...
मैं आज भी इस मोड से उस मोड तक
खडी सदी को महसूस करता हूँ
और ख्यालों में
जी लेता हूँ तुम्हारे साथ
वही खडी हुई सदी
नीलम🙏🙏
Tuesday, October 4, 2016
आदतन
आदतन
मैं कुछ ना कुछ कहूँगा जरुर
और
आदतन तुम सुनोगी नहीं
क्योंकि
मुझे ताकती तुम्हारी आंखें
बेमायना कर देती हैं
मेरे सारे लफज़ों को
और फ़िर मैं शब्द होते हुए भी
हो जाता हूँ निशब्द
ये हुनर बस तुम ही जानती हो
*नीलम*