**** मर्द कभी नहीं रोते*****
मैं बचपन से सुनता आ रहा हूँ,
मर्द कभी नहीं रोते,
और मैं भी कभी नहीं रोया,
मर्द हूँ ना..
जब बहिन के पति का स्वर्गवास हुआ,
तब भी नहीं रोया था मैं,
जबकि जानता था मेरी बहिन का संसार लुट चूका है,
मगर बहिन और भांजे ,भांजियो की जिम्मेदारी जो उठानी थी,
अगर रोता तो कमजोर पड जाता ना मैं,
इसलिए नहीं रोया तब भी,
क्यूंकि जानता था ...
मर्द कभी नहीं रोते,
बेटी का उजड़ा घर देख पिता भी २ साल बाद चल बसे,
तब भी नहीं रोया था मैं,
माँ और छोटे बहिन ,भाई को भी तो संभालना था ना मुझे,
और जानता था,
मर्द कभी नहीं रोते,
इसलिए नहीं रोया था तब भी,
अभी पिता के शोक से उभर नहीं पाया था कि माँ भी चल बसी,
अब हिम्मत टूटने लगी थी ,
लेकिन नहीं रोया था तब भी मैं,
क्यूंकि बहनों, छोटे भाई और उनके बच्चों को जो संभालना था ,
उन्हें दिलासा जो देना था,
कि मैं हूँ ,तुम सबके साथ,
तुम्हारे सर पर रहेगा हमेशा मेरा हाथ ,
तुम्हारे हर सुख दुःख में हूँ मैं तुम्हारे साथ,
और जानता भी था ना...
कि मर्द कभी नहीं रोते,
इसलिए नहीं रोया था तब भी मैं,
बहुत कोशिश की ,
कि नहीं रोना है मुझे,
लेकिन अब मैं भी कमजोर पड़ने लगा था,
छुप छुप के अंधेरों में रोने लगा था,
लेकिन एक दिन अचानक सुबह दफ्तर में किसी का फोन आया,
मेरा दिल तब बहुत जोर से घबराया,
मैंने हिम्मत जुटा कर फोन उठाया ,
वहां से कोई बोला आपके छोटे भाई कि तबियत बहुत बिगड़ गई है,
और वो बार बार बस यही कह रहे हैं,
कि मेरे भाई को बुला दो,
उन्हें बोलो जल्दी से आके मुझे अपने सीने में छुपा ले,
और मैंने झट से फोन पटक दिया,
और बेतहाशा दफ्तर से निकल पड़ा,
जब तक मैं अस्पताल पहुंचा ,
मेरा भाई मुझे छोड़ के चल दिया था,
और मैं ...
बुत बना बस देख रहा था,
बहुत बार याद की बचपन की बात,
कि मर्द कभी नहीं रोते ,
मगर सबके जाने का दुःख अब मुझे तोड़ रहा था ,
हर कोई मुझे अकेला छोड़ कर चले जा रहा था,
और मैं खुद को बस समझा रहा था,
कि मर्द कभी नहीं रोते..
भाई कि पत्नी और उसके नन्हे से बच्चों कि जिम्मेदारी भी अब मुझ पर आन पड़ी है,
उनको भी अब अब संभालना होगा,
और ये दुःख मेरी बहनों से भी झेला ना जायेगा,
लेकिन अब तक जो समन्दर आँखों में बाँध रखा था,
क्यूंकि बचपन से ये मान रखा था ,
कि मर्द कभी नहीं रोते,
अब मैं ये भूल चुका था,
आंसुओं का झरना फूट पड़ा था.
जब भी छोटे भाई के आखिरी शब्द याद आते हैं,
मेरे भाई को बुला दो बस....
तब तब मैं हमेशा भूल जाता हूँ,
कि ..
मर्द कभी नहीं रोते.....
मर्द जब टूट जाता है,
उसका हर अपना जब छूट जाता है,
तब मर्द भी रोते हैं..[नीलम]
— मर्द कभी नहीं रोते,
और मैं भी कभी नहीं रोया,
मर्द हूँ ना..
जब बहिन के पति का स्वर्गवास हुआ,
तब भी नहीं रोया था मैं,
जबकि जानता था मेरी बहिन का संसार लुट चूका है,
मगर बहिन और भांजे ,भांजियो की जिम्मेदारी जो उठानी थी,
अगर रोता तो कमजोर पड जाता ना मैं,
इसलिए नहीं रोया तब भी,
क्यूंकि जानता था ...
मर्द कभी नहीं रोते,
बेटी का उजड़ा घर देख पिता भी २ साल बाद चल बसे,
तब भी नहीं रोया था मैं,
माँ और छोटे बहिन ,भाई को भी तो संभालना था ना मुझे,
और जानता था,
मर्द कभी नहीं रोते,
इसलिए नहीं रोया था तब भी,
अभी पिता के शोक से उभर नहीं पाया था कि माँ भी चल बसी,
अब हिम्मत टूटने लगी थी ,
लेकिन नहीं रोया था तब भी मैं,
क्यूंकि बहनों, छोटे भाई और उनके बच्चों को जो संभालना था ,
उन्हें दिलासा जो देना था,
कि मैं हूँ ,तुम सबके साथ,
तुम्हारे सर पर रहेगा हमेशा मेरा हाथ ,
तुम्हारे हर सुख दुःख में हूँ मैं तुम्हारे साथ,
और जानता भी था ना...
कि मर्द कभी नहीं रोते,
इसलिए नहीं रोया था तब भी मैं,
बहुत कोशिश की ,
कि नहीं रोना है मुझे,
लेकिन अब मैं भी कमजोर पड़ने लगा था,
छुप छुप के अंधेरों में रोने लगा था,
लेकिन एक दिन अचानक सुबह दफ्तर में किसी का फोन आया,
मेरा दिल तब बहुत जोर से घबराया,
मैंने हिम्मत जुटा कर फोन उठाया ,
वहां से कोई बोला आपके छोटे भाई कि तबियत बहुत बिगड़ गई है,
और वो बार बार बस यही कह रहे हैं,
कि मेरे भाई को बुला दो,
उन्हें बोलो जल्दी से आके मुझे अपने सीने में छुपा ले,
और मैंने झट से फोन पटक दिया,
और बेतहाशा दफ्तर से निकल पड़ा,
जब तक मैं अस्पताल पहुंचा ,
मेरा भाई मुझे छोड़ के चल दिया था,
और मैं ...
बुत बना बस देख रहा था,
बहुत बार याद की बचपन की बात,
कि मर्द कभी नहीं रोते ,
मगर सबके जाने का दुःख अब मुझे तोड़ रहा था ,
हर कोई मुझे अकेला छोड़ कर चले जा रहा था,
और मैं खुद को बस समझा रहा था,
कि मर्द कभी नहीं रोते..
भाई कि पत्नी और उसके नन्हे से बच्चों कि जिम्मेदारी भी अब मुझ पर आन पड़ी है,
उनको भी अब अब संभालना होगा,
और ये दुःख मेरी बहनों से भी झेला ना जायेगा,
लेकिन अब तक जो समन्दर आँखों में बाँध रखा था,
क्यूंकि बचपन से ये मान रखा था ,
कि मर्द कभी नहीं रोते,
अब मैं ये भूल चुका था,
आंसुओं का झरना फूट पड़ा था.
जब भी छोटे भाई के आखिरी शब्द याद आते हैं,
मेरे भाई को बुला दो बस....
तब तब मैं हमेशा भूल जाता हूँ,
कि ..
मर्द कभी नहीं रोते.....
मर्द जब टूट जाता है,
उसका हर अपना जब छूट जाता है,
तब मर्द भी रोते हैं..[नीलम]
उसका हर अपना जब छूट जाता है,
ReplyDeleteतब मर्द भी रोते हैं
सुन्दर प्रस्तुति
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Neelam ji kee yah rachna behad achchhee hai. isaka kathy dil ko chhuta hai. hakeekt bayan kartee rachana ke liae Neelam ji ko badhai.
ReplyDeleteaapkee yah rachna behad achchhee hai. badhai aapko.
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