खुद जली और मुझको भी जला गयी होली,
राज कई जलाए होली मैं
हर बार बची राख में चिंगारी से, वो राज फिर भी बचा गयी होली,
अपने जिस्म को रंगा मैंने लाल पीले ,नीले रंगों से,
हर रंग को मेरे आंसुओं मैं फिर से बहा गयी होली,
खुद भी जली ,जल कर अपनी राख सा, मुझे भी राख बना गयी होली.
सोच रही थी इस होली पर हो जायुंगी आशा ,
लेकिन नीलम होने का अहसास फिर से करा गयी होली .
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