तू मुझसे मिला भी है नहीं भी
तुझसे मुझे गिला भी है नहीं
इस तन्हाई के सफर में
तू साथ चला भी है नहीं भि
वो लहरों का साहिल से मिलना
हुआ भी है नहीं भी
इस पूरनमासी की रात
चांद खिला भी है नहीं भी
कल जो पतझड़ था
वो आज सावन है नहीं भी
जो देखे ख्वाब आंखों ने
वो रात आज भी है नहीं भी
जो बातें मैंने कही तुमसे
वो बातें तुमने सुनी भी है नहीं भी
बदल गई है मेरी शब्दावली
तू मेरा गीत भी है गजल भी
जो कहानी थी मेरी वही
आज तुम्हारी भी है मेरी भी.
वाह नीलू जी कलम तोड़ दी आपने तो ..क्या खूब लिखा है ///
ReplyDeleteगौर फरमाइएगा ....
आ जाए किसी दिन तू
ऐसा भी नहीं लगता
लेकिन ये तेरा वादा
झूठा भी नहीं लगता
मिलता है सुकूँ दिल को
उस यार के कूचे में
हर रोज़ मगर जाना
अच्छा भी नहीं लगता
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है नीलू जी मर्म स्पर्शी रचना के लिए कोटिशः साधुवाद
ReplyDeleteकंहीं से ये पंक्तियाँ याद आतीं हैं..............
कर दिए लो आज गंगा में प्रवाहित
सब तुम्हारे पत्र, सारे चित्र तुम निश्चिंत रहना
लो विसर्जन आज वासंती छुवन का
साथ बीने सीप शंखों का विसर्जन
गुंथ न पाए कनुप्रिया के कुन्तलों में
उन अभागे मोर पंखों का विसर्जन
उस कथा का जो न हो पायी प्रकाशित'
मर चुका इक-इक चरित्र
तुम निश्चिन्त रहना
दूर हूँ तुमसे न अब बातें उठेंगी
मैं स्वयं रंगीन दर्पण तोड़ आया
वो नगर, वो राज-पथ, वो चौक गलियाँ
हाथ अंतिम बार सबको जोड़ आया
थे हमारे प्यार से जो-जो सुपरिचित
छोड़ आया , वो पुराने मित्र
तुम निश्चिन्त रहना