क्यों अजीब लगता है तुम्हे . . .
तुम्हारा मेरा साथ
हाँ ! !
जानती हूँ
कोई रिश्ता नहीं है
हमारे दरमिया
कोई बंधन भी नहीं है
मगर फ़िर भी
कुछ तो है ना
वो जो दर - ओ - दीवार पर टंगा है
यादों जैसा
वही जो खिड़कियों के परदे पर लहलहाता हुआ
कुछ बेपरवाह सा तुम्हारा अल्हड़पन
मैं तो बस अब तुम्हे ही जीती हूँ
अपने में ,
अपना सा
किसी सवाल जवाब से परे
किसी रिश्ते
किसी बंधन से परे
बँध जो चुकी हूँ
तुम्हारी यादों की परछाई के साथ
और जी लेती हूँ
तुम्हारा मुझ में होने का अहसास - - - - - नीलम - - - -
Followers
Total Pageviews
Sunday, September 13, 2015
क्यों अजीब लगता है तुम्हे . .
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment