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Thursday, September 10, 2015
याद है मुझे . . . तुमने कुछ पंक्तियाँ लिखी थीं उस रोज़ जब मैं मिली थी तुमसे आखिरी बार रात अक्सर बेचैनी में ही गुजरती है मेरी बार बार याद आते हैं तुम्हारे शब्द और हमारी अधूरी ख्वाहिशें . . अक्सर कोरे पन्नों को उलट पलट पढ़ने की कोशिश करती हूँ ताकि गढ़ पाऊँ तुम्हारी अधूरी कविता में खुद को देखो ! ! ! अब मैं भी टहलती हूँ छत पर अनगिनत तारों के बीच तन्हा चाँद की तरह मगर मेरी अधूरी ख्वाहिशें और . . मेरे दिल की धड़कने अहसास दिला ही देती हैं के मैं हूँ तो तुम भी तो अभी कहीँ बाकी हो मुझमें - - - - - नीलम - - - -
Ahsaas http://neelamkahsaas.blogspot.com/
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