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Wednesday, April 16, 2014

आवाज़ें......

आवाज़ें ……

आवाज़ें मर जाती है 
मगर ...

ज़िंदा रहती हैं खामोशियाँ 
और खामोशियाँ
अक्सर शोर करती हैं 
गूंजती हैं
सन्नाटों में 
कभी महसूस करना तुम 
तब 
जब
तुम्हारे चारों ओर पसरा हुआ हो
ढेर सारा सन्नाटा
और हाँ...
तुम्हारे घर की दीवारों पर टंगी हुई हों 
सिर्फ मेरी यादें .

_[नीलम]_

नींद ......

जाने क्यूँ मेरी रातें सुलग जाती हैं ,
ना तुम आते हो ,ना नींद ही  आती है। [नीलम]