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Wednesday, March 3, 2010

तू मुझसे मिला भी है नहीं भी
तुझसे मुझे गिला भी है नहीं

इस तन्हाई के सफर में
तू साथ चला भी है नहीं भि

वो लहरों का साहिल से मिलना
हुआ भी है नहीं भी

इस पूरनमासी की रात
चांद खिला भी है नहीं भी

कल जो पतझड़ था
वो आज सावन है नहीं भी

जो देखे ख्वाब आंखों ने
वो रात आज भी है नहीं भी

जो बातें मैंने कही तुमसे
वो बातें तुमने सुनी भी है नहीं भी

बदल गई है मेरी शब्दावली
तू मेरा गीत भी है गजल भी

जो कहानी थी मेरी वही
आज तुम्हारी भी है मेरी भी.

2 comments:

  1. वाह नीलू जी कलम तोड़ दी आपने तो ..क्या खूब लिखा है ///
    गौर फरमाइएगा ....
    आ जाए किसी दिन तू
    ऐसा भी नहीं लगता
    लेकिन ये तेरा वादा
    झूठा भी नहीं लगता
    मिलता है सुकूँ दिल को
    उस यार के कूचे में
    हर रोज़ मगर जाना
    अच्छा भी नहीं लगता

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  2. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है नीलू जी मर्म स्पर्शी रचना के लिए कोटिशः साधुवाद
    कंहीं से ये पंक्तियाँ याद आतीं हैं..............

    कर दिए लो आज गंगा में प्रवाहित
    सब तुम्हारे पत्र, सारे चित्र तुम निश्चिंत रहना

    लो विसर्जन आज वासंती छुवन का
    साथ बीने सीप शंखों का विसर्जन
    गुंथ न पाए कनुप्रिया के कुन्तलों में
    उन अभागे मोर पंखों का विसर्जन
    उस कथा का जो न हो पायी प्रकाशित'
    मर चुका इक-इक चरित्र
    तुम निश्चिन्त रहना

    दूर हूँ तुमसे न अब बातें उठेंगी
    मैं स्वयं रंगीन दर्पण तोड़ आया
    वो नगर, वो राज-पथ, वो चौक गलियाँ
    हाथ अंतिम बार सबको जोड़ आया
    थे हमारे प्यार से जो-जो सुपरिचित
    छोड़ आया , वो पुराने मित्र
    तुम निश्चिन्त रहना

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