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Monday, December 27, 2010

माँ ...

माँ....!! माँ....!!




दिल की गहराईयों से निकला हुआ एक दिव्य शब्द,



जैस ही मैं माँ को पुकारती ,



वो गहरी निद्रा से भी उठ कर मुझे अपनी बाहों मैं भर लेती,



और कहती क्या हुआ मेरी रानी बिटिया को,



डर गयी थी क्या!



और तब मैं उसे अपने पुरे दम से भीच लेती अपने में



माँ की बाहों का घेरा



मेरे लिए होता एक ठोस सुरक्षा कवच,



फिर डर को भूल उसकी गोद मैं आराम से सो जाया करती,



तब इस बात से होती अनजान की वो भी तो सोएगी....



और माँ अपनी आँखों की नींद चुपके से मेरी पलकों पर



रख कर ममता से भरी नज़रों से निहारा करती



और इसी तरह सुबह का सूरज का हो जाता आगाज



माँ की देहलीज़ पर,



और माँ धीरे से मेरा सर तकिये पर रख कर उठ जाया करती थीं,



हम सभी के लिए,



तब क्यूँ नहीं सोचा कभी माँ के लिए,



आज माँ बन जाने के बाद ,



माँ का हम सब के प्रति समर्पित होना समझ में आता है ,



कितनी ख़ुशी मिलती है अपना सर्वस्व अपने बच्चों पर न्योछावर करके,



खुद को अपने बच्चो में जीना किता देता है ख़ुशी....



भले वो नींद हो, समय हो, या हो हंसी ,



या फिर ...



निस्वार्थ ममता.!!!!!

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