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Saturday, November 19, 2011

ख़लल ...





     जाने क्यूँ ख़लल डाल जाती हैं उसकी यादें मेरी ज़िन्दगी में ,
     मैंने तो उसे यूँ कभी ख़्वाबों में भी परेशां किया ना था !!
.[नीलम ] 

11 comments:

  1. सुन्दर भावपूर्ण रचना.

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  2. "जाटदेवता" संदीप पवाँर ji.. shukriya..:)

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  3. आदरणीया नीलम जी
    सस्नेह अभिवादन !

    कहने को दो ही पंक्तियों में आपने बात कह दी… लेकिन बहुत गहरे और व्यापक अर्थ हैं …
    जाने क्यूं ख़लल डाल जाती हैं उसकी यादें मेरी ज़िन्दगी में ,
    मैंने तो उसे यूं कभी ख़्वाबों में भी परेशां किया ना था !!

    यादों का काम ही ज़िंदगी में खलल डालना होता है …
    लेकिन यादें जीवन का सहारा भी होतीहैं…

    बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  4. - राजेन्द्र स्वर्णकार - ji bahut bahut dhanyvaad.

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति, बधाई.

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    महाशिवरात्रि की शुभकामनाएँ...!

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