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Monday, July 11, 2016

तुम जब भी आया करो ....

तुम जब भी आया करो
मुझे मिटा के जाया करो
कफन के साथ-साथ कब्र की मिट्टी भी दबाया करो

मैं उठ खडी होती हूँ
तुम्हारी याद आने पर
अपनी यादों को भी
मेरे साथ ही दफनाया करो .

तुम जब भी आया करो
मुझे मिटा के जाया करो

चार कान्धे थे जो
वो बेगानों के थे
उनमे इक कान्धा
अपना भी लगाया करो

तुम जब भी आया करो
मुझे मिटा के जाया करो .

तुम भी लौट जाना
बाकी गमजदों के साथ
बस अपने अहसास को
मेरे साथ मेरी कब्र में सुलाया करो

तुम जब भी आया करो
मुझे मिटा के जाया करो

वो जो रो रहे थे
वो भी तुम्हारे ही थे
उनसे कह दो
दो अश्क मेरे लिये भी बहाया करो

तुम जब भी आया करो
मुझे मिटा के जाया करो

तुम चढाते हो हर रोज
फ़ूल मेरी कब्र पर
उम्मीद का इक दिया भी तो कभी -कभी जलाया करो

तुम जब भी आया करो
मुझे मिटा के जाया करो
फन के साथ-साथ कब्र की मिट्टी भी
दबाया करो ....@ नीलम...

2 comments:

  1. नीलम... जी..बहुत दिन बाद आपके ब्लॉग पर आया ..बहुत अच्छा लगा..भावपूर्ण अनुभूतियाँ....सुन्दर रचना के लिए साधुवाद..नमस्कार:))

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "भूली-बिसरी सी गलियाँ - 10 “ , मे आप के ब्लॉग को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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